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हरियाणा विधानसभा का मानसून सत्र 2 अगस्त से,कांग्रेस किसी को भी नेता प्रतिपक्ष नहीं चुन पाई है

सत्य खबर चंडीगढ़ (संदीप चौधरी) – विधानसभा का मानसून सत्र 2 अगस्त से शुरू होने जा रहा है। ऐसे में विपक्षी नेता सबसे मानसून सत्र इस बार अनोखा रहने वाला है। हालातों की मानें तो यह सत्र बिना नेता प्रतिपक्ष के चलने वाला है। प्रदेश में मौजूदा समय में मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर कांग्रेस खड़ी है, लेकिन आपसी कलह की वजह से पार्टी इस कुर्सी पर अपने किसी विधायक को बैठा नहीं पा रही है।

अभय के सिर सजा था ताज
2014 के विधानसभा में बीजेपी ने 47 सीटों पर जीत दर्ज कर प्रदेश में पहली बार बहुमत से सरकार बनाई थी। इन चुनावों में इंडियन नेशनल लोकदल 19 प्लस 1 के साथ दूसरे नंबर पर रहकर मुख्य विपक्षी दल के तौर पर आई थी और नेता प्रतिपक्ष का ताज इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला के छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला के सर पर सजा था। वहीं कांग्रेस 15 सीटें (जो कि अब 17) जीतकर तीसरे नंबर पर ही थी इस चुनाव में छह निर्दलीय भी जीतकर विधानसभा में पहुंचे थे।

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बिखरी इनेलो और गया ताज
गोहाना रैली के बाद इंडियन नेशनल लोक दल में बिखराव की शुरुआत हो गई थी। जिसके बाद इनेलो के सांसद दुष्यंत चौटाला ने एक नई पार्टी जननायक जनता पार्टी को बनाया। जब यह नहीं पार्टी इनेलो में से निकली थी तो लाजमी था कि कुछ पुरानी पार्टी के नेता इस पार्टी के साथ भी जाएंगे और हुआ भी ऐसा ही कुछ ऐसा ही। बड़े नेताओं के साथ-साथ इनेलो के 4 विधायकों ने भी जेजेपी को सपोर्ट किया। भगवा रंग की ओर दौड़े इनेलो विधायक। इसके बाद धीरे-धीरे कई विधायकों ने अपनी आस्था भारतीय जनता पार्टी में दिखाते हुए विधायक पद से इस्तीफा दीया और इनेलो छोड़ बीजेपी में चले गए। इनेलो में विधायकों की लगातार होती कमी के कारण अभय सिंह चौटाला को नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ना पड़ा था।

अधर में लटकी नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी
अब जब इनेलो की स्थिति कमजोर हो चुकी है तो नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी कांग्रेस के हिस्से में आ गई है। 17 सीटों के साथ कांग्रेस-बीजेपी के बाद प्रदेश में दूसरे नंबर पर है। इस नाते कांग्रेस के किसी विधायक को नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर बैठाया जा सकता है। जिसके लिए विधानसभा अध्यक्ष कंवरपाल गुर्जर ने कांग्रेस पार्टी को पत्र लिख इस पद के लिए न्योता भी दिया था। वहीं कांग्रेस विधायक दल की नेता किरण चौधरी इसके लिए दावा पेश कर चुकी है। जिसके बाद से पार्टी में तकरार शुरू हो गई।

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किसको मिलेगा मौका?
अब सवाल खड़ा ये होता है कि क्या दिशाहीन कांग्रेस बिना नेता प्रतिपक्ष के भाजपा सरकार का खुलकर विरोध कर पाएगी? या फिर भितरघात के चलते ये सत्र केवल बीजेपी की उपलब्धियां गिनाने पर ही सिमट कर रह जाएगा।

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